UJJAIN महाकाल मंदिर : उज्जैन, मध्यप्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जिसे भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। यहां स्थित महाकालेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके साथ जुड़ी भस्म आरती की प्रक्रिया भी अत्यधिक रोचक और रहस्यमयी मानी जाती है। महाकाल मंदिर की भस्म आरती हर दिन विशेष रूप से सुबह के समय होती है और यह एक अद्वितीय धार्मिक अनुष्ठान है, जो भक्तों के दिलों में भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और आस्था को और भी गहरा करता है।

UJJAIN महाकाल मंदिर का महत्व
महाकालेश्वर मंदिर को उज्जैन में स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह मंदिर विशेष रूप से उन भक्तों के लिए बहुत पवित्र है जो भगवान शिव के परम भक्त हैं। महाकालेश्वर भगवान को न केवल मृत्यु के देवता के रूप में पूजा जाता है, बल्कि उन्हें संहारक और सृजन के प्रतीक के रूप में भी पूजा जाता है। यहाँ की भस्म आरती, इस मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक क्रियाओं में से एक है।
भस्म आरती का महत्व
भस्म आरती महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन प्रातःकाल होती है। यह आरती विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ‘भस्म’ शब्द का अर्थ होता है राख, और यह पूजा की प्रक्रिया को विशेष बनाता है क्योंकि इसमें भस्म यानी राख का उपयोग किया जाता है। भस्म आरती में भगवान शिव को भस्म अर्पित किया जाता है, जो उनके शाश्वत और अमर स्वरूप का प्रतीक है। यह प्रक्रिया न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव भी देती है, जिसे हजारों भक्त प्रतिदिन महसूस करते हैं।
UJJAIN MAHAKAL भस्म आरती की प्रक्रिया
भस्म आरती की प्रक्रिया बहुत ही विशिष्ट और अनुशासनबद्ध होती है। इस प्रक्रिया में कई चरण होते हैं, जो भक्तों के लिए एक सशक्त आध्यात्मिक अनुभव उत्पन्न करते हैं। आइए जानते हैं इस प्रक्रिया के प्रत्येक चरण के बारे में:
- रात्रि में महाकाल का संधान
भस्म आरती की शुरुआत रात्रि में महाकाल के दर्शन से होती है। रात्रि को महाकाल के मंदिर के पट बंद होते हैं, और यह समय भगवान शिव की शांति और ध्यान का होता है। रात्रि में एक विशेष प्रकार की पूजा होती है, जिसमें महाकाल की भस्म आरती की तैयारी की जाती है। - स्नान और आरती का प्रारंभ
भस्म आरती की प्रक्रिया सुबह तड़के प्रारंभ होती है। सबसे पहले पुजारी महाकालेश्वर की मूर्ति का शुद्धिकरण करते हैं। फिर भगवान शिव को स्नान कराकर उन्हें रुद्राक्ष की माला और अन्य पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। - भस्म का संग्रह
भस्म आरती में उपयोग होने वाली भस्म विशेष प्रकार की होती है, जो श्मशान घाट से लाकर महाकाल के मंदिर में लाई जाती है। यह भस्म शमशान में किसी शव के जलने के बाद जो राख बचती है, उससे ली जाती है। मान्यता है कि यह भस्म शिव के उग्र रूप और उनकी मृत्यु के देवता के रूप में सत्ता का प्रतीक है। इसे ‘मृत्युलोक की राख’ भी कहा जाता है। भस्म को एक विशेष स्थान पर रखा जाता है, और इसे भगवान शिव के ऊपर अर्पित किया जाता है। - भस्म का अर्पण
जब पूजा की समस्त क्रियाएं पूरी होती हैं, तो महाकालेश्वर की मूर्ति पर भस्म अर्पित की जाती है। यह भस्म अर्पित करते समय विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इस दौरान भगवान शिव की महिमा का गायन और उनके उग्र रूप की प्रार्थना की जाती है। भस्म का अर्पण करते हुए इसे एक विशेष विधि से किया जाता है ताकि यह भगवान शिव की शक्ति और रौद्र रूप को प्रदर्शित कर सके। - आरती का समापन
भस्म अर्पित करने के बाद, महाकाल की भस्म आरती की जाती है। आरती के दौरान विशेष प्रकार के घंटों और दीपों का प्रयोग होता है। इस समय मंदिर परिसर में भक्ति का अद्भुत वातावरण बनता है, और भक्तगण भगवान शिव की आराधना में पूरी तरह से समाहित हो जाते हैं। - धूप और दीपक की व्यवस्था
आरती के बाद महाकाल के दर्शन के लिए भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है। इसके साथ ही महाकाल के मंदिर में विशेष रूप से दीपक जलाए जाते हैं, जो महाकाल के दिव्य प्रकाश का प्रतीक माने जाते हैं।