Mallikarjuna Swamy : भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है, जो आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित है। यह स्थान विशेष रूप से अपने अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के उस रूप का प्रतीक है, जिसे पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में बहुत मान्यता प्राप्त है। श्रीशैलम का मल्लिकार्जुन मंदिर न केवल आंध्र प्रदेश, बल्कि सम्पूर्ण भारत में श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

इस लेख में हम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के इतिहास, धार्मिक महत्व, मंदिर की विशेषताएँ, और इस स्थान से जुड़ी विभिन्न किंवदंतियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
Mallikarjuna Swamy मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, और यह पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। श्रीशैलम के मल्लिकार्जुन मंदिर का उल्लेख विभिन्न हिंदू धार्मिक ग्रंथों, जैसे शिव महापुराण, स्कंदपुराण और भागवत महापुराण में मिलता है। मल्लिकार्जुन का नाम भगवान शिव के ‘मल्लि’ और देवी पार्वती के ‘अर्जुन’ से लिया गया है। इस मंदिर में भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा एक साथ की जाती है, और यह दोनों देवताओं का सामूहिक रूप माना जाता है।
कहा जाता है कि जब भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच एक बड़ा विवाद हुआ था, तो देवी पार्वती ने भगवान शिव को यह चुनौती दी थी कि वह उनके बिना किसी कारण के पहाड़ों के आसपास चलने का कार्य करें। भगवान शिव ने उनकी चुनौती स्वीकार की और उन्होंने श्रीशैलम पर्वत के पास स्थित इस स्थान पर अपना रूप लिया। इसके बाद से इस स्थान को मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाने लगा।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह मंदिर भगवान शिव के आद्य रूप का प्रतीक है, और यहाँ पर भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ देवी पार्वती की पूजा भी की जाती है। यह स्थान विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है जो जीवन में शांति, समृद्धि और मानसिक सुख की कामना करते हैं। यहां पूजा करने से सभी दुखों का नाश होता है और भक्तों को आत्मिक शांति मिलती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार, श्रीशैलम में भगवान शिव और देवी पार्वती के दर्शन से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। यहां की पूजा करने से शिव भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इसके अलावा, यह स्थान एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ भी है, जहां देवी पार्वती की पूजा जाती है।
मल्लिकार्जुन मंदिर की वास्तुकला
मल्लिकार्जुन मंदिर की वास्तुकला दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित है, जो अत्यंत भव्य और अद्वितीय है। इस मंदिर का मुख्य भाग गर्भगृह है, जहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। गर्भगृह के अंदर शिवलिंग को सादगी से रखा गया है, और इसके चारों ओर देवताओं की मूर्तियाँ और चित्रकला के अद्भुत उदाहरण देखे जा सकते हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर विशाल द्वारपालों की मूर्तियाँ हैं, जो भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने से पहले धर्म की महत्वपूर्ण शिक्षा देती हैं। मंदिर परिसर में एक बड़े जलाशय के रूप में पवित्र सरोवर भी स्थित है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं और शुद्धता प्राप्त करते हैं। मंदिर के चारों ओर शांति का वातावरण और सुंदर प्राकृतिक दृश्य भक्तों को एक विशेष अनुभव प्रदान करते हैं।
Mallikarjuna Swamy मंदिर का दर्शन
मल्लिकार्जुन मंदिर में दर्शन करने का एक विशिष्ट तरीका है। यहां आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले मंदिर के मुख्य द्वार पर आते हैं और वहां प्रवेश के लिए एक अनुशासनिक प्रक्रिया का पालन करते हैं। मंदिर में प्रवेश के बाद, भक्त सबसे पहले भगवान शिव के मुख्य रूप से स्थापित ज्योतिर्लिंग का दर्शन करते हैं। इसके बाद, देवी पार्वती की पूजा की जाती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न मंत्रों और श्लोकों का उच्चारण किया जाता है, जिनका उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना है।
मल्लिकार्जुन मंदिर में विशेष रूप से दो प्रमुख पूजा काल होते हैं – एक प्रात:काल और दूसरा संध्याकाल। संपूर्ण दिनभर मंदिर में भक्तों की भीड़ रहती है, और यहां के वातावरण में अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति का माहौल होता है। हर साल महाशिवरात्रि, नवरात्रि और अन्य प्रमुख त्योहारों के दौरान यहां विशेष पूजा अर्चना और धार्मिक आयोजन होते हैं, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी किंवदंतियाँ
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के साथ कई धार्मिक और पौराणिक किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं। एक प्रमुख किंवदंती के अनुसार, जब भगवान शिव और देवी पार्वती का मिलन हुआ था, तो वहां एक पर्वत के ऊपर स्थित एक तालाब के पास एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ था, जिसे मल्लिकार्जुन के नाम से जाना गया। यह स्थान भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपनी दिव्य शक्ति के दर्शन कराने के लिए यहां अपना रूप लिया था, और तभी से यह स्थान शिव और पार्वती के अद्वितीय रूप का प्रतीक बना। भक्तों का मानना है कि यहां पूजा करने से हर प्रकार के दुःख और संकट समाप्त होते हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
मल्लिकार्जुन मंदिर का पर्यटकीय महत्व
मल्लिकार्जुन मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के पास स्थित प्राकृतिक सुंदरता और पर्वतीय दृश्य पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। श्रीशैलम के आसपास के क्षेत्र में आदिवासी संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर का समागम है, जो यहां आने वाले हर पर्यटक को एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है।
मंदिर के आसपास के क्षेत्र में कई अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक स्थान भी हैं, जिन्हें देखने के लिए भक्त और पर्यटक आते हैं। श्रीशैलम के जंगल, जलप्रपात और झीलें इस स्थान को और भी आकर्षक बनाती हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह भगवान शिव और देवी पार्वती के सामूहिक रूप का प्रतीक है और भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान है। यहां के दर्शन से व्यक्ति को न केवल शारीरिक शांति मिलती है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी प्राप्त होती है। मल्लिकार्जुन मंदिर की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता अनमोल है, और यह भारत के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां आने से न केवल भगवान शिव के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, बल्कि यह स्थान जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति का संचार करता है।